تاریخ انتشارشنبه ۱۰ مهر ۱۳۸۹ ساعت ۱۷:۲۱
کد مطلب : ۴۶۶
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महदवियत के लिए नुक्सानदेह चीज़ों की पहचान
यह संभव है कि किसी सभ्यता, सांस्कृति व तहज़ीब के लिए कुछ चीज़ें नुक्सानदेह हों और वह उसके विकास व तरक़्क़ी के मार्ग रुकावट हों। कभी कभी कोई धार्मिक सभ्यता भी आफतों व विपत्तियों का शिकार हो जाती है और इस कारण उसकी तरक़्क़ी की रफ्तार को सुस्त हो जाती है। “दीन के लिए नुक्सानदेह चीज़ों की पहचान” नामक विषय उन आफतों को पहचानने और उनसे मुक़ाबेल करने के तरीक़ों का वर्णन करने का ज़िम्मेदार है।
उचित है कि इस आखरी हिस्से में “महदवियत के लिए नुक्सानदेह चीज़ों की पहचान” के बारे में बहस करें ताकि उन चीज़ों को पहचान कर उन्हें बेकार बनाने और उनसे मुक़ाबला करने के बारे में सोचा जा सके।
महदवियत के लिए नुक्सान देने वाली चीज़ें ऐसी हैं कि अगर उनसे लापरवाही की जाये तो मोमेनीन में विशेष रूप से जवानों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के वजूद या उनकी ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं की पहचान का अक़ीदा सुस्त हो जायेगा और इससे उनके क़दम कुछ गुमराह लोगों या गुमराह फिर्कों की तरफ़ बढ़ जायेंगे। इस आधार पर उन नुक्सानदेह आफतों की पहचान, हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मुन्तज़िरों को अक़ीदे व अमल में भटकने से सुरक्षित रखेगी।
अब हम यहाँ पर महदवियत को नुक्सान पहुँचाने वाली चीज़ों में से कुछ महत्वपूर्ण चीज़ों पर विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत बहस करते हैं।
ग़लत नतीजा निकालना
महदवियत के लिए सबसे बड़ी आफ़त इस्लामी तहज़ीब का ग़लत अर्थ करना और ग़लत नतीजा निकालना है। रिवायतों की ग़लत या अधूरी व्याख्या करने से नतीजा भी ग़लत ही निकलता है। हम यहाँ पर इसके कुछ नमूने आपकी ख़िदमत में पेश करते हैं।
1. इन्तेज़ार का ग़लत अर्थ इस बात का कारण बना कि कुछ लोगों ने यह गुमान कर लिया कि दुनिया सिर्फ हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़रिये बुराइयों से पाक हो सकती है, इस लिए बुराइयों और गुनाहों के मुक़ाबले में हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। बल्कि कुछ लोग तो यह भी कह देते हैं कि हज़रत इमाम महदी (अ. स)) के ज़हूर को नज़दीक करने के लिए समाज में गुनाहों और बुराइयों को फैलाना चाहिए। यह ग़लत नज़रीया कुरआन और अहले बैत अलैहिमुस सलाम के नज़रियों के बिल्कुल मुखालिफ़ है, क्योंकि “अम्र बिल मारुफ और नही अनिल मुनकर” करना हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है।
इमाम खुमैनी अलैहिर्रहमा इस नज़रिये की रद में फरमाते हैं कि
अगर हम में इतनी ताक़त है कि पूरी दुनिया से ज़ुल्म व सितम का खात्मा कर सकें तो उसे ख़त्म करना हमारी शरई ज़िम्मेदारी होगी, लेकिन हम में इतनी ताक़त नहीं है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) दुनिया को अदल व इन्साफ़ से भर देंगे, इसका मतलब यह नहीं है कि तुम अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हट जाओ और तुम्हारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है।
उसके बाद वह अपनी बात को जारी रखते हुए फरमाते हैं कि
क्या हम कुरआने मजीद की आयात के खिलाफ़ काम करें नही आनिल मुनकर करना छोड़ दें ? और अम्र बिल मअरुफ को छोड़ कर, गुनाहों को सिर्फ़ इस वजह से फूलने फलने दें कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर हो जाये ?।
प्रियः पाठकों। हम ने इन्तेज़ार नामक बहस के शुरु में इन्तेज़ार के सही अर्थ का उल्लेख किया है।
2. कुछ लोगों ने कुछ रिवायतों के ज़ाहिर से यह नतीजा निकाला है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से पहले होने वाला हर इन्केलाब ग़लत और बातिल है। इसी लिए ईरान के इस्लामी इन्केलाब (जो कि तागूत और शैतानी ताक़तों के खिलाफ़, अल्लाह के अहकाम लागू करने के लिए था) के मुक़ाबले में ग़लत फैसले लिये गये।
इसके जवाब में हम यह कहते हैं कि बहुत से इस्लामी अहकाम जैसे : इस्लामी हुदूद, क़िसास, दुशमनों से जिहाद, और बुराइयों से पूरा मुक़ाबला सिर्फ़ इस्लामी हुकूमत की छत्र छाया में ही संभव है। इस लिए इस्लामी हुकूमत की स्थापना एक अच्छा और क़ाबिले क़बूल काम है। कुछ रिवायतों में क़ियाम करने से इस लिए मना किया गया है ताकि बातिल और ग़ैर इस्लामी इन्केलाबों में शिरकत न की जाये, या ऐसे इन्केलाबों में जिन में शर्तों और हालात को मद्दे नज़र न रखा जाये, या ऐसा क़ियाम जो “क़ियामे महदी” के रूप शुरु किया जाये, न यह कि समाज सुधार के लिए किया जाने वाला हर इन्केलाब ग़लत और बातिल है।
3. महदवियत से ग़लत नतीजा निकालने का एक नमूना हज़रत इमाम महदी (अ. स.) को खतरनाक शक्ल में पेश करना है।
कुछ लोग यह कल्पना करते हैं कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) अपनी तलवार से खून का दरिया बहायेंगे और बहुत से लोगों को तहे तेग़ कर डालेंगे, लेकिन यह तसव्वुर बिल्कुल ग़लत है। क्योंकि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ज़ात ख़ुदा की रहमत और मेहरबानी के ज़ाहिर होने की जगह है। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की तरह पहले लोगों के सामने इस्लाम को स्पष्ट दलीलों के साथ पेश करेंगे और इस काम से बहुत बड़ी संख्या में लोग इस्लाम क़बूल करके उनके साथ हो जायेंगे। अतः हज़रत इमाम महदी (अ. स.) सिर्फ अपने उन हठधर्म दुश्मनों के ख़िलाफ़ तलवार का इस्तेमाल करेंगे जो हक़ के रौशन हो जाने के बाद भी हक़ क़बूल नहीं करेंगे। वह लोग तलवार की ज़बान के अलावा कोई ज़बान नहीं समझते होंगे।
ज़हूर में जल्द बाज़ी
महदवियत के लिए एक नुक्सानदेह चीज़ ज़हूर में जल्द बाज़ी है। जल्द बाज़ी का मतलब यह है कि किसी चीज़ के वक़्त से पहले या उसके लिए रास्ता हमवार होने से पहले उसकी माँग करना है। जल्दबाज़ इंसान अपनी कमज़ोरी और कमज़र्फ़ी की वजह से अपनी गंभीरता और चैन व सकून को खो बैठते हैं और किसी चीज़ की शर्तें पूरी होने और स्थिति के अनुकूल होने से पहले ही उस चीज़ की माँग करने लगते है।
महदवियत में अक़ीदा रखने वाले सभी लोग “ग़ायब इमाम ” के मलसे पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के अभिलाषी हैं और अपने पूरे वजूद के साथ ज़हूर का इन्तेज़ार करते हैं। वह उनके ज़हूर में जल्दी के लिए दुआ तो करते हैं, लेकिन कभी भी जल्द बाज़ी से काम नहीं लेते। ग़ैबत का ज़माना जितना ज़्यादा लंबा होता जाता है उनका इन्तेज़ार भी लंबा होता जाता है, लेकिन फिर भी उनके हाथ से सब्र का दामन नहीं छुटता। बल्कि वह तो ज़हूर के बहुत ज़्यादा अभिलाषी होने के बावजूद भी ख़ुदा वन्दे आलम की मर्ज़ी और उसके इरादे के सामने अपने सिर को झुकाये रखते हैं और ज़हूर की ज़रूरी शर्तों को पूरा करने और रास्ता हमवार करने के लिए कोशिश करते हैं।
अब्दुर्रहमान इब्ने कसीर कहते हैं कि मैं हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) की ख़िदमत में बैठा हुआ था कि “महरम” आये और कहा कि मैं आप पर कुर्बान, मुझे बताइये कि हम जिस चीज़ के इन्तेज़ार में हैं उस इन्तेज़ार की घडियां कब पूरी होंगी ? इमाम (अ. स.) ने फरमायाः ऐ महरम ! ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करने वाले झूठे हैं और जल्द बाज़ी करने वाले हलाक होने वाले हैं और इस बारे में अपने सिर को झुकाने वाले निजात व मुक्ति पाने वाले हैं।
ज़हूर के बारे में जल्द बाज़ी से इस लिए मना किया गया है कि जल्द बाज़ी की वजह से इंसान में नाउम्मीदी पैदा हो जाती है जिसकी वजह से सकून और इत्मिनान खत्म हो जाता है और उसकी स्वीकार करने की हालत, शिकवे और शिकायत में बदल जाती है। ज़हूर में दूर की वजह से उसमें बेचैनी पैदा हो जाती है और वह इस बीमारी को दूसरों तक भी पहुँचा देता है। कभी कभी ज़हूर में जल्द बाज़ी की वजह से इंसान हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के वजूद से भी इन्कार कर देता है।
उल्लेखनीय है कि ज़हूर के बारे में जल्दबाज़ी की वजह यह है कि इंसान यह नहीं जानता कि ज़हूर अल्लाह की सुन्नतों में से है और तमाम सुन्नतों की तरह उसके लिए भी शर्तों का पूरा और रास्ते हमवार होना ज़रुरी हैं, इस वजह से वह ज़हूर के बारे में जल्द बाज़ी करता है।
ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करना
महदवियत के लिए नुक्सानदेह चीज़ों में से एक यह है कि इंसान हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करे। जबकि ज़हूर का ज़माना लोगों से छुपाया गया है और अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) की रिवायतों में ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करने के बारे में सख्ती के साथ मना किया गया है और वक़्त निश्चित करने वालों को झूठा कहा गया है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) से सवाल हुआ कि क्या ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित है ?
इमाम (अ. स.) ने फरमाया :
जो लोग ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करें वह झूठे हैं। इमाम (अ. स.) ने
इस वाक्य को तीन बार क।..
लेकिन फिर भी कुछ लोग जान बूझ कर या भूल चूक के आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित कर देते हैं। जिसका ग़लत असर यह होता है कि जो लोग इस तरह के झूठे वादों पर यकीन कर लेते हैं, वह उसके पूरा न होने पर ना उम्मीदी के शिकार हो जाते हैं।
इस लिए सच्चे मुन्तज़िरों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह ख़ुद को नादान और स्वार्थी शिकारियों के जाल से दूर रखें और ज़हूर के बारे में सिर्फ़ अल्लाह की मर्ज़ी का इन्तज़ार करें ।
ज़हूर की निशानियों की ग़लत व्याख्या
अनेकों रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की बहुत सी निशानियां का वर्णन हुआ हैं, लेकिन उनकी दकीक़ व सही कैफियत और विशेषताएं स्पष्ट नहीं हैं, जिसकी वजह से कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत राये और शंकाओं से काम लेते हैं और कभी कभी ज़हूर की निशानियों को कुछ खास घटनाओं से जोड़ कर उसके द्वारा ज़हूर के नज़दीक होने की खबरें देते हैं।
यह मसला भी महदवियत के लिए एक आफत है और इसकी वजह से भी इंसान नाउम्मीदी का शिकार हो जाता है। मिसाल के तौर पर अगर किसी इलाक़े में कोई सुफ़यानी नाम का इंसान हो और उसे वास्तविक सुफ़यानी मान कर इमाम के ज़ल्द ज़हूर करने की ख़बर आम कर दी जाये या दज्जाल के बारे में बग़ैर दलील के उल्टी सीधी बातें करके उस किरदार को किसी पर चिपका दिया जाये, और उसके आधार पर लोगों को ख़ुश ख़बरी दी जाये कि अब इमाम के ज़हूर का ज़माना नज़दीक है, और वर्षों बाद भी इमाम (अ. स.) का ज़हूर न हो तो बहुत से लोग भटक जायेंगे और अपने सही अक़ीदों में शक करने लगेंगे।
बेकार बहसें
महदवियत में बहुत सी ऐसी शिक्षाएं पाई जाती हैं जिनका प्रचार व प्रसार ज़रूरी समझा जाता है और वह शियों के इल्म को बढ़ाने में आधारभूत भूमिका निभाती हैं। ग़ैबत के ज़माने में उन पर अमल करना बहुत महत्वपूर्ण है।
कभी कभी कुछ लोग या कुछ गिरोह अपनी बात-चीत में, लेख में, पत्रिकाओं में और कान्फ्रेंसों में ग़ैर ज़रूरी बहस करते हैं। जिनकी वजह से कभी कभी मुन्तज़िरों के ज़हनों में ग़लत शुब्हे और सवाल पैदा हो जाते हैं।
मिसाल के तौर पर इमाम ज़माना (अ. स.) से मुलाक़ात की बहस करना और लोगों में इमाम से मुलाक़ात का बहुत ज़्यादा शौक़ पैदा करना। इसके समाज पर बहुत ग़लत असर पड़ते हैं, ऐसी बातें ना उम्मीदी पैदा करती हैं और कभी कभी तो इमाम (अ. स.) के इन्कार का कारण भी बन जाती हैं। जबकि रिवायतों में इस चीज़ पर ज़ोर दिया गया है कि इमाम महदी (अ. स.) की मर्ज़ी के अनुसार क़दम बढ़ाया जाये और अपने व्यवहार में उनकी पैरवी की जाये। इस लिए ग़ैबत के ज़माने में इन्तेज़ार करने वालों की ज़िम्मेदारियों का वर्णन बहुत महत्वपूर्ण है। ताकि अगर इमाम (अ. स.) से मुलाक़ात हो जाये तो उस मौक़े पर इमाम (अ. स.) हम से राज़ी और खुश रहें।
इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की शादी, औलाद और रहने की जगह आदि के बारे में बात करना, यह तमाम ग़ैर ज़रूरी बहसें हैं। अतः इनकी जगह पर ऐसी बहसों का वर्णन करना चाहिए जो मुन्तज़िरों के लिए फ़ायदेमंद साबित हों। इसी वजह से ज़हूर की शर्तों और ज़हूर की निशानियों की बहस को प्राथमिक्ता देनी चाहिए क्योंकि इमाम (अ. स.) के ज़हूर के अभिलाषी लोगों का उन शर्तों से परिचित होना उन शर्तों को पैदा करने में सहायक बनेगा।
यह नुक्ता भी महत्वपूर्ण है कि महदवियत की बहस में हर पहलू पर नज़र रखना ज़रुरी है। यानी किसी एक विषय पर बहस करते वक़्त महदवियत से संबंधित तमाम चीज़ों पर नज़र रखनी चाहिए। क्योंकि कुछ लोग कुछ रिवायतों को पढ़ने के बाद उनकी ग़लत व्याख्या करने लगते हैं इसकी वजह यह है कि उनकी नज़र दूसरी रिवायतों पर नहीं होती। मिसाल के तौर पर कुछ रिवायतों में लंबी जंग और क़त्ल व ग़ारत की खबर दी गई है अतः कुछ लोग उन्हीं रिवायतों के आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की बहुत ख़तरनाक तस्वीर पेश कर देते हैं और जिन रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की मुहब्बत और मेहरबानियों का वर्णन हुआ है और उनके अख़लाक़ को पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का अख़लाक़ बताया गया है, उनसे ग़ाफिल रहते हैं। ज़ाहिर है कि दोनो तरह की रिवायतों में गौर व फिक्र से यह हक़ीक़त स्पष्ट होती है कि इमाम (अ. स.) तमाम ही हक़ तलब इंसानों से (अपने शिया और दोस्तों की बात तो अलग है) मुहब्बत, रहम व करम का व्यवहार करेंगे और अल्लाह की उस आखरी हुज्जत की तलवार सिर्फ़ ज़ालिमों और उनकी पैरवी करने वालों के सरों पर चमकेगी।
इस आधार पर महदवियत के विषय पर बहस करने के लिए बहुत अधिक शैक्षिक योग्यता की ज़रुरत है। अतः जिन में यह योग्यता नहीं पाई जाती उन्हें इस मैदान में क़दम नहीं रखना चाहिए। क्योंकि उनका इस मैदान में क़दम रखना, महदवियत के लिए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकता है।
झूठा दावा करने वाले
महदवियत के अक़ीदे के लिए एक नुक्सानदेह चीज़ इस बारे में “झूटा दावा करने वाले” लोग हैं। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत के ज़माने में कुछ लोग झूठा दावा करते हैं कि हम इमाम (अ. स.) से एक खास राब्ता रखते हैं या उनकी तरफ़ से उनके एक खास नायब हैं।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ने अपने चौथे ख़ास नायब के नाम जो आखरी खत लिखा उसमें इस बात की वज़ाहत की हैं कि :
छः दिन के बाद आपकी मृत्यु हो जायेगी, अतः आप अपने कामों को अच्छी तरह देख भाल लेना और अपने बाद के लिए किसी को वसीयत न करना क्यों कि मुकम्मल ग़ैबत का ज़माना शुरु होने वाला है। .आने वाले ज़माने में हमारे कुछ शिया मुझसे मुलाकात और मुझसे राब्ते का दावा करेंगे। जान लो कि जो इंसान सुफियानी के खुरुज और आसमानी आवाज़ से पहले हमें देखने का दावा करे, वह झूटा है।
इमाम (अ. स.) के इस ख़त से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हर शिया की यह ज़िम्मेदारी है कि वह इमाम (अ. स.) से राब्ते और उनकी खास नियाबत का दावा करने वाले लोगों को झुठलायें और इस तरह उन दुनिया परस्त लोगों का रास्ता बंद कर दें।
इस तरह के झूठे दावे करने वालों ने एक क़दम इससे भी आगे बढ़ाया और इमाम (अ. स.) की नियाबत के दावे के बाद ख़ुद महदवियत के ही दावेदार बन गये। उन्होंने अपने उस झूठे दावे के आधार पर एक गुमराह फिर्के की नीँव ड़ाल कर बहुत से लोगों को गुमराह करने का रास्ता हमवार कर दिया। इन गिरोहों के इतिहास को पढ़ने के बाद यह बात स्पष्ट होती है कि उनमें से बहुत से लोग साम्राज्यवाद की हिमायत और उसके इशारे पर बने हैं और उसी के सहारे अपने वजूद को बाक़ी रखे हुए हैं।
स्पष्ट है कि इस तरह के गुमराह फ़्रिक़ों और गिरोहों का वजूद में आना और महदवियत या इमाम ज़माना (अ. स.) की नियाबत का दावा करना वालों पर एतेमाद करना और उनसे संबंध स्थापित करना आदि जिहालत और नादानी की वजह से है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की सही पहचान व शनाख़्त के बगैर उनके दीदार का बहुत ज़्यादा शौक़, या इस बारे में मक्कारों के वजूद से ग़ाफिल रहना, झूठे दावेदारों के रास्ते को हमवार करता है।
इस लिए इन्तेज़ार करने वाले शिओं को चाहिए कि महदवियत के बारे में अपनी मालूमात को बढ़ा कर ख़ुद को मक्कारों और धोकेबाज़ों से सुरक्षित रखे और मोमिन व मुत्तकी शिया ओलमा की पैरवी करते हुए मक्तबे इस्लाम के रौशन रास्ते पर कदम बढ़ाते रहें।
अल्हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आ-लमीन
रब्बना तकब्बल मिन्ना इन्नका अन्तस समी-उल अलीम।
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