अर्थात सच्चाई वह है जिसका इक़रार दुशमन भी करे। इमाम महदी (अ. स.) के विश्वव्यापी आंदोलन का उल्लेख सिर्फ़ शिया किताबों में ही नही बल्कि दूसरे इस्लामी फिरकों की एतेक़ादी किताबों में भी मिलता है और इन किताबों में उनके बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है। वह लोग भी मानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नस्ल और हज़रत फातिमा ज़हरा (स. अ.) की औलाद से महदी ज़हूर करेंगे। इमाम महदी (अ. स.) के बारे में अहले सुन्नत के अक़ीदे को जानने के लिए अहले सुन्नत के बड़े आलिमों की किताबों को पढ़ना चाहिए। सुन्नी मुफ़स्सिरों ने अपनी तफ़सीरों में इस बात को स्पष्ट किया है कि क़ुरआने मजीद की कुछ आयतें, आखरी ज़माने में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की तरफ़ इशारा करती हैं, जैसे फख़रुद्दीन राज़ी.. और अल्लामा क़ुरतुबी.. इसी तरह अहले सुन्नत के अधिकतर मुहद्दिसों (हदीस का वर्णन करने वालों व लिखने वालों को मुहद्दिस कहते हैं) ने इमाम महदी (अ. स.) के संबंध में वर्णित हदीसों को अपनी किताबों में नक्ल किया है और इन में अहले सुन्नत की मोतबर किताबें भी शामिल हैं, जैसे सहाहे सित्ता.. और मुसनदे अहमद इब्ने हंबल (हंबली फिरक़े के स्संथापक)) अहले सुन्नत के कुछ इस ज़माने और कुछ पिछले ज़माने के आलिमों ने इमाम महदी (अ. स.) के बारे में किताबें भी लिखी हैं, जैसे अबू नईम इस्फ़हानी ने (मजमूअतुल अरबईन) चालीस हदीस और सुयूती ने किताब (अलउरफ़ुल वरदी फि अखबारिल महदी (अ. स.)। यह बात भी उल्लेखनीय है कि अहले सुन्नत के कुछ आलिमों ने महदवीयत के अक़ीदे के पक्ष में और इस अक़ीदे को न मानने वालों की रद में भी किताबें और लेख लिखे हैं। उन्होंने इल्मी बयानों और हदीसों की रौशनी में इमाम महदी (अ. स.) के वाकिये को यक़ीनी माना है और इस वाक़िये को उन मसाइल में रखा है जिनसे इंकार नही किया जा सकता, जैसे मुहम्मद सिद्दीक मग़रिबी इन्हों ने इब्ने ख़ल्दून की रद में एक किताब लिखी है और उसकी बातों का मुँह तोड़ जवाब दिया है... प्रियः पाठकों हम यहाँ पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के बारे में अहले सुन्नत के अक़ीदे के बारे में कुछ नमूने पेश कर रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया : अगर दुनिया की उम्र का सिर्फ़ एक दिन भी बाक़ी रह जायेगा तो बेशक ख़ुदा वन्दे आलम उस दिन को इतना लंबा बना देगा कि मेरी नस्ल से मेरा हम नाम एक इंसान क़ियाम करेगा... पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया : मेरी नस्ल से एक इंसान क़ियाम करेगा, जिस का नाम और सीरत मुझसे मिलती जुलती होगी, वह दुनिया को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जैसा कि वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी... यह बात भी उल्लेखनीय है कि यह सब लोग मानते हैं कि आख़िरी ज़माने में इंसानों को निजात दिलाने और इस दुनिया में अदल व इन्साफ़ फैलाने वाला एक इंसान ज़रूर आयेगा। यह अक़ीदा विश्वव्यापी है और इसे सभी लोग क़बूल करते हैं। यह बात भी सच है कि आसमानी धर्मों के मानने वाले सभी लोग अपनी अपनी किताबों की शिक्षाओं के आधार पर उस क़ाइम का इन्तेज़ार कर रहे हैं। मुकद्दस किताब ज़बूर, तौरैत, इनजील और हिन्दुओं व पारसियों की किताबों में भी मानवता को मुक्ति देने वाले एक इंसान के ज़हूर की तरफ़ इशारा हुआ है। यह बात अलग है कि हर क़ौम ने उसे अलग अलग नामों से याद किया है। पारसियों ने उसे सोशियान्स यानी दुनिया को नेजात देने वाला, और ईसाईयों ने उसे मसीहे मौऊद और यहूदीयों ने सरुरे मीकाइली के नाम से याद किया है। पारसियों की मुकद्दस किताब "जामा सब नामे" में इस तरह उल्लेख हुआ है। अरब का पैग़म्बर आखरी पैग़म्बर होगा, जो मक्का के पहाड़ों के बीच पैदा होगा, वह गुलामों के साथ मुहब्बत करेगा और गुलामों की तरह रहे सहेगा, उसका दीन सभी दीनों से बेहतर होगा, उसकी किताब तमाम किताबों को बातिल (निष्क्रिय) करने वाली होगी। उस पैग़म्बर की बेटी जिसका नाम खुरशीद जहां और शाहे ज़मां होगा उसकी नस्ल से ख़ुदा के हुक्म से इस दुनिया में एक ऐसा बादशाह होगा जो इस पैग़म्बर का आखरी जानशीन (उत्तराधिकारी) होगा और उसकी हुकूमत क़ियामत से मिल जायेगी...